सूर्यकुण्ड
मंदिर के उत्तर में परिसर के अन्तर्गत ही सूर्यकुण्ड विद्यमान है। सूर्यपुत्र महारथी कर्ण द्वारा यहाँ भगवान परशुरामजी से धनुर्वेद की शिक्षा लेते समय प्रतिदिन सूर्योपासना के लिए प्रयुक्त होने वाला यह जलकुण्ड जनश्रुति के अनुसार महाभारतकाल के पूर्व से ही सम्मान्य चला आ रहा है। कहते हैं कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग सहित तमाम चर्म रोगों का निवारण होता है। प्रत्येक रविवार को इस सूर्यकुण्ड में श्रद्धा सहित स्नान कर जो व्यक्ति विधिवत् षोडशोपचार से देवी का पूजन करता है उसकी सारी व्याधियाँ नष्ट हो जाती है, ऐसी प्रसिद्धि है। यहाँ स्नान से पुत्र-पौत्रादि प्राप्त होने की बात भी श्रद्धालुओं में चर्चित है। पहले इस कुण्ड का क्या स्वरूप था, यह बताना तो सम्भव नहीं है किन्तु अपने वर्तमान रूप में यह काफी बड़ा अण्डाकार जलाशय है, जिसके चारों तरफ पक्की सीदियों बनी हुई और आवश्यकतानुसार पानी निकालने तथा डालने की मशीनी व्यवस्था है। सूर्यकुण्ड में ऐसी तमाम मछलियों हैं जो इसके जल को स्वच्छ बनाने में बहुत उपयोगी हैं। यहाँ शीघ्र ही पूर्वी तट पर रथारूढ़ उगते हुए भगवान भुवन भास्कर की प्रतिमा के सामने अर्ध्य चढ़ाते हुए महारथी कर्ण की प्रतिकृति बनाने की योजना है जिसके बाद कुण्ड की शोभा और बढ़ जायेगी।