शिव गोरक्ष हरे ! जय गोरक्ष हरे !

शिव गोरक्ष हरे ! जय गोरक्ष हरे !

शिव गोरक्ष हरे ! जय गोरक्ष हरे !

तुम सत् चित् आनन्द सदाशिव, आगम-निगम परे।
योग-प्रचारण-कारण युग-युग गोरखरूप धरे।। शिव गोरक्ष हरे !

अकल-सकल-कुल-अकुल परापर, अलख निरंजन ए।
भव-भव-विभव-पराभव-कारण, योगी ध्यान घरे।। शिव गोरक्ष हरे !

अष्ट-सिद्धि-नवनिधि कर जोरे, लोटत चरण तले।
भुक्ति-मुक्ति, सुख-सम्पत्ति यतिपति! सब तब एव करे।। शिव गोरक्ष हरे !

कुण्डल मण्डित गण्डस्वल छवि, कुंचित केश घरे।
सदय नयन स्मेरानन युवलन, अंग-अंग ज्योति झरे।। शिव गोरक्ष हरे !

अमस्काय अवधूत अयोनिज, सुर-नर-नमन करे।
तब कृपया परया परिवेष्टित, अधमहुँ पार तरे ।। शिव गोरक्ष हरे !

सद्‌गुरु विषम-विषय-विष-चूर्णित तिरिया-जाल परे।
जाग मछन्दर गोरख आया, गा उद्‌धार करे।। शिव गोरक्ष हरे !

प्रिया वियोग भस्वरी विह्वल, विकल मसान फिरे।
महामोह तम मेटि दयानिधि। सिद्धि-समृद्ध करे।। शिव गोरक्ष हरे !

कालभोज वाप्पा पर रीझे, खङ्ग प्रदान करे।
भये राजगुरु चित्रकूट पति, दिशि-दिशि विजय करे।। शिव गोरक्ष हरे !

पूरन भगत विमाता दण्डित, बिनु अँग कूप परे।
तब कृपया सर्वाङ्ग पूर्ण है, महासिद्ध निकरे।। शिव गोरक्ष हरे !

अजपा-मानिक-रतन-चर्पटी, योगेश्वर सिगरे।
गोगा, आल्हा, धर्म, मल्लिका, सब शिष्यत्व करे।। शिव गोरक्ष हरे !

कृष्ण-रुक्मिणी, परिणय-प्रकरण, देवन विघ्न करे।
ऋषि-मुनि विनती सुनि तुम प्रगटे, कंगन-बन्ध करे।। शिव गोरक्ष हरे !

कुपित जलन्धरनाय कानिपा नायहुँ रोष भरे।
राजा गोपीचन्द मदनमति, जब कृपया उबरे।। शिव गोरक्ष हरे !

तब प्रसाद बल जीति छियालिस, पृथिवी राज करे।
नाम-पादुका वह कुल अबहूँ, मुद्रा-मुकुट घरे।। शिव गोरक्ष हरे !

सागर मसि, लेखनी कल्पतरू, कागद भूमि करे।
गणपति लिखई कल्पशत तबहूँ, महिमा लेख परे।। शिव गोरक्ष हरे !

जो यह नाय महेन्द्र-कृत-स्तुति गाये, श्रवण करे।
नाय कृपातें सब सुख लहि भव-सागर पार तरे।। शिव गोरक्ष हरे !