ॐ जय पाटन माता । पाटेश्वरि माता।
तुम्हरो ही गुण गाऊँ-ध्याऊँ, तुमसे ही नाता ।। १।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
तुम जननी, भरणी, संहरणी त्रिभुवन की त्राता ।
श्वेत श्याम रतनार तीन गुणमयी मूर्ति माता
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
आदि शक्ति तुम प्रकृति, महाचिति, परब्रह्म-माया।
अग-जग तक फैली तब महिमा, निगमागमगाता ।। ३।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
गिरि-तनया तुम ब्रह्मचारिणी, शशि-घण्टा ख्याता।
कूष्माण्डादि तुम्हारे विग्रह नव स्कन्द-माता ।। ४ ।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
वामस्कन्ध सति पाटम्बर जहाँ गिरा तेरा ।
वहीं तुम्हारा पीठ बना यह गुरु गोरख स्थाता ।। ५।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
शुम्भ-निशुम्भ-महिष-मर्दिनि तुम, चण्ड-मुण्ड घाता।
ब्रह्मा-विष्णु महेश तुम्हीं से शक्तिमान माता ।। ६ ।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
घट-घट-वासिनि ! दुर्गति नाशिनि ! दुर्गे दुरित हरे
तुम करुणा-वरुणालय पालय जगदे तन्माता ।। ७।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
तुम वाणी तुम वर्ण मालिका तुम वाड्यमयगाता।
निखिल विश्व तुम से ही विकसित, तुम में लय पाता ।। ८ ।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
हम बालक मूरख अज्ञानी नित प्रति अधकर्ता ।
फिर भी शरण तुम्हारी आये तुम सरबस दाता ।। ६।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
भक्त महेन्द्रनाथ कृत यह स्तुति, जो भी नर गाता।
सुख-सम्पत्ति, सन्मति-सद्गति सब तव कृपया पाता।। १० ।।
..........ॐ जय पाटन माता ! पाटेश्वरि माता !!
।। इति महंत महेन्द्रनाथकृताश्री पाटेश्वरी स्तुतिः समाप्ता ।।