मंदिर के गर्भगृह में पहले कोई प्रतिमा नहीं थी। मध्य में केवल एक चाँदी मढ़ा चबूतरा था और अब भी है जिसके नीचे वह सुरंग ढँकी हुई है जो ख्याति के अनुसार पाताल तक चली गयी है और इसी के कारण यहाँ की अदृश्य देवी पातालेश्वरी का नाम सार्थक लगता है। पाताल में 'परमेश्वरी देवी' का अधिष्ठान 'तंत्र चूड़ामणि' में भी उल्लिखित है। इस प्रकार अलग-अलग निमित्तों से देवीपाटन स्थित दुर्गा देवी के पाटेश्वरी, पातालेश्वरी और परमेश्वरी ये तीनों नाम मिलते हैं। अस्तु, अत्यन्त प्राचीन काल से मंदिर के गर्भगृह में स्थित पातालगामी सुरंग के मुहाने पर बने चबूतरे पर एक यन्त्रांकित कपड़ा बिछा रहता है जिस पर फूल अक्षत और प्रसाद चढ़ाकर पातालेश्वरी देवी की पूजा होती है। चबूतरे के ऊपर छत से लगा एक बड़ा सा अलंकृत ताम्र छत्र है जिसके नीचे क्रमशः चाँदी के अन्य कई और छत्र हैँ। ऊपर वाले ताम्रछत्र पर सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती अंकित है।