|| प्रथमं शैलपुत्री ||
|| द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ||
|| तृतीयं चन्द्रघण्टेति ||
|| कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ||
|| पंचमं स्कन्दमातेति ||
|| षष्ठं कात्यायनीति ||
|| सप्तमं कालरात्रीति ||
|| महागौरीति चाष्टमम् ||
|| नवमं सिद्धिदात्री ||
मुख्य मंदिर की बाहरी परिक्रमा में यन्त्र सहित नवदुर्गाओं की और बालदेवी की प्रतिमाएँ क्रमशः स्थापित है। यन्त्र, शक्ति के केन्द्रीयकरण के द्योतक है। यन्त्रों में केन्द्रित शक्ति निश्चित मन्त्रों के जाप से साधक को शीघ्र और प्रभावी लाभ पहुँचाती है। यहाँ कई लोगों द्वारा अनुभूत दृढ़ विश्वास है कि परिक्रमा से भूत-प्रेत जनित बाधाएँ दूर होती हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।