ब्रह्मादयोऽपि तव मूर्तिमनन्तभेदैः, प्रानर्चुरर्चनपराः परमार्थबुद्धया।
सृष्ट्याद्यकर्तृकतया विभया विभासि, पाटेश्वरि! तवमसि भक्तजनस्य सिद्धिः।
ऋद्धिः सतां भवतु सा परमोदयानां, दानेन दीर्घतपसा परिसेविता त्वम्।
पूर्णेन्दुमण्डलसमानमुखेन भासि, पाटेश्वरि ! त्वमसि मे भवभूतराशिः।।
हे भगवती पाटेश्वरी! परमार्थ की सिद्धि के लिए ब्रह्मा आदि ने अनन्त प्रकार से आपकी भक्तिपूर्वक अर्चना की। सृष्टि की आदिकर्मीरूपी विभाशक्ति से आप समलंकृत हैं तथा अपने उपासकों को सिद्धि प्रदान करती हैं। दीर्घ तपस्या और दान (पुण्यकर्म) के द्वारा परिसेवित होकर आप सज्जनों के परमोदय की सम्पन्नता बनें। हे पाटेश्वरी! आप पूर्ण चन्द्रमण्डल के समान मुख से प्रकाशयुक्त हैं और मेरे सांसारिक ऐश्वर्य की राशि हैं।
हिन्दू राष्ट्र नेपाल और भारत की सीमा पर स्थित श्री माँ पाटेश्वरी शक्ति पीठ देवीपाटन मंदिर, तुलसीपुर, बलरामपुर अत्यन्त प्राचीनकाल से प्रसिद्ध शक्तिपीठों में परिगणित प्रमुख धर्म-साधना स्थल रहा है। समय-समय पर यहाँ जुटने वाली स्थानीय एवं क्षेत्रीय जनता की भारी भीड़ के अलावा शताब्दियों से दोनों देशों के श्रद्धालु तीर्थयात्री दूर-दूर से भी दर्शनार्थ आते रहते हैं। जब से देश-काल के अनुसार यातायात के साधनों में विकास हुआ है और मंदिर सहित परिसर के भौतिक स्वरूप एवं सम्बन्धित स्थानों के साथ जन-सुविधाओं का भी विस्तार होता जा रहा है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी भारी वृद्धि हुई है। तदनुसार स्थान के प्रति लोगों की रूचि और जिज्ञासा भी बढ़ी है।
आदिशक्ति जगदम्बा की पूजा-अर्चना के लिए चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा न केवल देवी की आराधना की दृष्टि से विशिष्ट नवरात्र का शुभारम्भ है, अपितु यह हमारे विक्रम संवत् सहित सृष्टि और युगाब्ध के शुभारम्भ की भी आदि तिथि है।