उदारचेता और कर्तृत्ववान समाज देवी सन्त श्री महंत महेन्द्रनाथ योगी जी का श्री महंत के रूप में कार्यकाल श्री माँ पाटेश्वरी शक्तिपीठ देवीपाटन के लिए कायाकल्प और युगान्तरकारी घटना है। वे यहाँ श्री महंत के रूप में डेढ़ दशक से अधिक समय तक नहीं रहे, किन्तु इतने ही वर्षों में मठ-मंदिर की भौतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को चार चाँद लगाते हुए उन्होंने इसे जो ऊँचाई, भव्यता और अनुकरणीय अनुशासन व्यवस्था दी, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है। वर्तमान मठ-मंदिर तथा परिसर के सुन्दरीकरण से लेकर सूर्यकुण्ड के जीर्णोद्धार, यात्री निवास के निर्माण, छायादार स्थायी बीथियों का निर्माण, यात्री विश्रामालय का निर्माण, शिवावतार महायोगी गोरक्षनाथ जी की भव्य मूर्ति सहित मंदिर के भीतरी परिक्रमा मार्ग में भव्य नव दुर्गा मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा सहित युगानुरूप विस्तार और सुन्दरीकरण का उल्लेखनीय महान कार्य ब्रह्मलीन महंत महेन्द्रनाथ जी के कर्मयोग एवं असाधारण कर्मकौशल का प्रमाण है। इतना सब कुछ देखते ही देखते सहज भाव से करने के बाद वे अचानक नवम्बर 2000 ई0 को कुल 57 वर्ष की आयु में ही ब्रह्मलीन हो गये।
इस शक्तिपीठ के स्वर्ण युग के इस महानायक की पुण्यस्मृतियों को कृतज्ञता पूर्वक सुरक्षित रखने के लिए उन्हें मूर्तिमान रूप में यहाँ सदा उपस्थित रखने के लिए उनके सुयोग्य उत्तराधिकारी श्री महंत कौशलेन्द्र नाथ योगी ने मुख्य मंदिर से दायीं ओर थोड़ी दूरी पर श्री गोरक्षनाथ जी के मंदिर की पंक्ति में ही एक भव्य, दर्शनीय और स्थापत्य कला की दृष्टि से भी श्रेष्ठ समाधि मंदिर का निर्माण कराकर उनकी द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर इसी वर्ष नवम्बर 2003 को गोरक्षपीठाधीश्वर परमपूज्य श्री महंत अवैद्यनाथजी महाराज के कर कमलों से उनकी संगमरमर की सुन्दर प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी है जो ब्रह्मलीन महंत महेन्द्रनाथ योगी जी के तमाम भक्तों और उपासकों के साथ ही क्षेत्र की जनता और दूर-दूर से आने वाले यात्रियों के लिए भी विशेष आकर्षण का केन्द्र है।