श्री माँ पाटेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर देवीपाटन से द्वापर युग में हुए महाभारत युद्ध के एक महानायक सूर्यपुत्र कुन्तीनन्दन दानवीर कर्ण का भी निकट सम्बन्ध रहा है। उसके सम्बन्ध के साथ ही भगवान विष्णु के दश अवतारों में एक भगवान परशुराम का भी सम्बन्ध इस स्थान से ज्ञात होता है। प्रसिद्ध है
कि महारथी कर्ण ने यहीं उन दिनों निवास कर रहे भगवान परशुराम जी से धनुर्वेद की शिक्षा ली थी। उक्त सन्दर्भ की स्मृति को सुरक्षित रखते हुए लोगों ने यहाँ महारथी कर्ण की एक प्रतिमा स्थापित की थी, जिसे अब से ७०-८० वर्ष पूर्व गोरक्षनाथ 'एण्ड कनफटा योगीज' ग्रन्थ के विद्वान लेखन ब्रिग्स ने देखा था। ब्रिग्स द्वारा देखी गयी कर्ण की प्राचीन प्रतिमा अभी भी मंदिर में विद्यमान है किन्तु अब उसकी जगह संगमरमर की एक दूसरी प्रतिमा जो स्थापत्य की दृष्टि से काफी आकर्षक और भव्य हैं, ब्रह्मलीन महंत महेन्द्रनाथ जी के समय में उनके ब्रह्मलीन होने के कुछ समय पूर्व प्रतिष्ठित हुई है। इस प्रकार यह प्रतिमा देवीपाटन मंदिर के अतीत के एक गौरवपूर्ण अध्याय से जुड़ी है जो स्थान की प्राचीनता और महत्ता का भी द्योतक है। लोग सूर्यकुण्ड के स्नान कर सूर्यपुत्र महारथी कर्ण का भी श्रद्धा और आदर के साथ दर्शन करते हैं।