मंदिर में देवी पाटेश्वरी के बाद कालिकाजी की प्रतिमा श्रद्धालुओं के बीच सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। काली मंदिर में पहले बलि भी होती थी, जिसे युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने अपने समय से बन्द कराकर यहाँ केवल सात्विक पूजा का ही प्रचलन किया। हाथ में खप्पर और गले में मुण्डमाला धारण किये, शिव के वक्षस्थल पर नृत्य करतीं माँ काली की, श्रद्धालुओं को अभयदान देती मूर्ति बहुत ही आकर्षक और भव्य है।