सर्वविदित है कि देवीपाटन तुलसीपुर में जहाँ परम्परागत विश्वास के अनुसार जगज्जननी सती का बायाँ स्कन्ध और पाटम्बर गिरा था वहाँ पाटेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने कराया था। इतना ही नहीं उन्होंने यहाँ कुछ काल तक भगवती की आराधना करते हुए योग-साथना भी की थी। उचित है कि यहाँ इस शक्तिपीठ के संस्थापक महायोगी श्रीनाथ जी का मंदिर हो, किन्तु इस अपेक्षित ऐतिहासिक आवश्यकता की पूर्ति का श्रेय भी हजारों वर्ष के मंदिर के इतिहास में अभी कुछ ही वर्ष पूर्व ब्रह्मलीन हुए महंत महेन्द्रनाथ योगी जी महाराज को ही है, जिनके कायाकल्पकारी कार्यकाल को मंदिर के इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। ब्रह्मलीन होने के कुछ दिनों पूर्व उन्होंने श्री माँ पाटेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के ही दायी ओर श्री माँ पाटेश्वरी शक्ति पीठ मंदिर के संस्थापक योगिराज शिवावतार श्री गोरक्षनाथ जी की भव्य मूर्ति की स्थापना की थी, जिस पर योजनानुसार एक कलात्मक भव्य मंदिर का निर्माण चाहते हुए भी अचानक ब्रह्मलीन हो जाने के कारण वे नहीं कर सके थे। शीघ्र ही उनका यह सपना उनके सुयोग्य उत्तराधिकारी श्री महंत कौशलेन्द्र नाथ योगी जी ने पूरा करने का निश्चय किया है। महायोगी श्री नाथ जी की मूर्ति की स्थापना के पश्चात् यहाँ माता पाटेश्वरी के साथ उनकी भी पूजा-अर्चना और भोग आरती का विधान प्रारम्भ हो गया है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर जो श्रद्धालु श्री गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर नहीं जा सकते, वे यहाँ भारी संख्या में खिचड़ी चढ़ाते है। वैशाख पूर्णिमा महायोगी की प्राकट्य तिथि मानी जाती है। उस दिन श्रद्धालु भक्त एवं योगीजन यहाँ विशेष पूजा एवं उत्सव का आयोजन करते हैं।